Friday, 27 September 2013

क्या कोई ,कभी उनके लिए भी रोता है ?

क्या कोई ,कभी उनके लिए भी रोता है ?
जो सड़को पर बेबस पड़े रहते हैं ,इक बोझ की तरह ,
जो हर दिन हमें दिख जाते हैं कार,बस,रिक्सो की ,
खिड़कियों से,एक वक्त की रोटी की भीख मांगते हुए,


कुछ माँए ,जो अपने बच्चे को गोद मे चिपकाकर,
ऊसकी हर सांस की भीख मांगती हुई,
कभी अपनी,कभी उसकी किस्मत पर रोती हुई,
कभी खुद को कभी भगवान को कोसती हुई,
जिंदगी मांगने की तो हिम्मत ही नहीं उसमे,
शायद मौत ही मांगती होगी ,हर पल,
पर शायद उसके लिए ये मौत भी बहुत महंगी है,
जो आती ही नही हजारों मिन्नते करने पर भी,


इस अंधी, भागती,दौड़ती , जिंदगी मे,जहाँ हर कोई अपनी जिंदगी के लिए मरता है,
वहाँ क्या कोई,कभी उनके लिए भी रोता है ?

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