तो छत की तरफ देखता हूँ , उस पर बैठे कबूतर को देखता हूँ ,
उसकी उन्मुक्त उड़ान को देखता हूँ|
सुबह जब उठते ही सारे ऐप खोलकर देख लेता हूँ,
तो फिर अपनी दुनिया को खोलता हूँ, अपने आप को देखता हूँ,
आप को देखता हूँ|
नेटफ्लिक्स और प्राइम की दुनिया से जब पूरी तरह ऊब जाता हूँ ,
तो फिर किताबों की तरफ देखता हूँ, कहानियों की तरफ देखता हूँ,
किरदारों की तरफ देखता हूँ|
टीवी पर, मोबाइल पर, लैपटॉप पर, जब सबकुछ देख लेता हूँ,
तो फिर लोगों की तरफ देखता हूँ , रिश्तों की तरफ देखता हूँ,
सपनो की तरफ देखता हूँ, अपनों के तरफ देखता हूँ|
गैर ज़रूरी इतनी सारी चीज़ें देख लेता हूँ, सुन लेता हूँ, सोच लेता हूँ,
कि फिर और कुछ नहीं सोचता,
बस रेत सी फिसलती ज़िन्दगी को देखता हूँ,
कई अधुरे कामों को देखता हूँ, खुद से किये वादों को देखता हूँ,
और स्क्रीन पर उँगलियाँ दौड़ाते, बस यूहीं देखता रहता हूँ…