Thursday, 9 June 2016

Dedicated to all the lovely souls of my life !!!

मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफसाना ,
कहीं से तुम बयां करते , कहीं से हम बयां करते ।

उन्ही बातों , उन्ही सपनो ,उन्ही चुलबुल तरानों पर ,
कहीं से तुम कसक भरते , कहीं से हम सिसक भरते ।

हँसते हम उन आंसुओं पर और रोते तुम भी उन ठहाकों पर ,
उन यादों को पकड़ के बंद मुठ्ठी में छुपाने की कोशिश में ,
कभी आँखें बयान करती , कभी ये लब सुना देते |


PS:First para by वहशत रज़ा अली (Ref: Rekhta)

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