मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफसाना ,
कहीं से तुम बयां करते , कहीं से हम बयां करते ।
उन्ही बातों , उन्ही सपनो ,उन्ही चुलबुल तरानों पर ,
कहीं से तुम कसक भरते , कहीं से हम सिसक भरते ।
हँसते हम उन आंसुओं पर और रोते तुम भी उन ठहाकों पर ,
उन यादों को पकड़ के बंद मुठ्ठी में छुपाने की कोशिश में ,
कभी आँखें बयान करती , कभी ये लब सुना देते |
PS:First para by वहशत रज़ा अली (Ref: Rekhta)
कहीं से तुम बयां करते , कहीं से हम बयां करते ।
उन्ही बातों , उन्ही सपनो ,उन्ही चुलबुल तरानों पर ,
कहीं से तुम कसक भरते , कहीं से हम सिसक भरते ।
हँसते हम उन आंसुओं पर और रोते तुम भी उन ठहाकों पर ,
उन यादों को पकड़ के बंद मुठ्ठी में छुपाने की कोशिश में ,
कभी आँखें बयान करती , कभी ये लब सुना देते |
PS:First para by वहशत रज़ा अली (Ref: Rekhta)